भौगोलिक रूप से कोल जनजाति मध्य प्रदेश व उत्तर प्रदेश के पड़ोसी जिलों की निवासी रही है। इन दोनों प्रान्तों की इस जनजाति में आपस में एकता है, उनके पारिवारिक व सामाजिक सम्बन्ध है और वे एक ही परम्परा का हिस्सा है। मध्य प्रदेश में उत्तर प्रदेश की सीमा तक के क्षेत्रों को अनुसूचित क्षेत्र घोषित किया गया है और वहाँ के कोल आदिवासियों को जनजाति का दर्जा दिया गया है, परन्तु उत्तर प्रदेश से जुड़े हुए भौगोलिक क्षेत्रों को अनुसूचित क्षेत्रों में नहीं शामिल किया गया है और उत्तर प्रदेश के कोलों को अनुसूचित जनजाति दर्जे से वंचित किया हुआ है।
1961 में हुई भारत की जनगणना के अनुसार कोलों की कुल जनसंख्या 5,58,747 थी और इनमें से 3,86,009 मध्य प्रदेश में एवं 1,26,288 लोग उत्तर प्रदेश में निवास करते थे। इसके अलावा 46,397 उड़ीसा में थे। उत्तर प्रदेश में कोल केवल दक्षिणी पठारी इलाके में रहते है। ये वर्तमान बांदा, चित्राकूट, इलाहाबाद, मिर्जापुर, वाराणसी एवं सोनभद्र जिले में रहते है जो इनकी भौगोलिक पृथकता का प्रमाण है। 1961 में कोल उत्तर प्रदेश की सम्पूर्ण जनजातियों का 22 फीसदी थे।
संस्कृति व जीवन
कोल आदिवासियों के प्राकृतिक सामाजिक संगठन के कई विशिष्ट रूप कई स्थानों पर आज भी मिलते है। इनका समाज पितृसत्ता पर आधारित है और संयुक्त परिवार की प्रथा आम बात नहीं है। विवाह के बाद पुत्र अलग हो जाता है। कालांतर में इनके अन्दर कुछ उपजातियां भी बन गई ह, पर उपजातियों में विभाजन काम के आधार पर नहीं है और सभी कोल आदिवासी सामान्यत: मजदूरी व खेती तथा वनों पर निर्भर ह। इनके रीति–रिवाजों में इनकी पारम्परिक विशिष्टता के अतिरिक्त हिन्दू संस्कारों का प्रभाव भी दिखता है।
कोलों की सामाजिक व्यवस्था में, जहाँ कोलों की संख्या पर्याप्त है, एक मुखिया होता है और सभी के सम्मान का पात्रा होता है। मुखिया बारह सदस्यीय पंचायत का प्रमुख होता है और ये पंचायतें सर्वोपरि जनजातीय पंचायत के आधीन होती हैं, जो कई गांवों के महत्वपूर्ण व्यक्तियों को मिलाकर गठित की जाती है। पंचायत में महिला सदस्य नहीं होती है। जिन गांवों में केवल मुखिया होता है वह विवाद निस्तारण के लिए एक दल नामांकित करता है।
कोल 1
Reviewed by दुनिया मनोवैज्ञानिक
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