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कोल 2

कोल आदिवासियों में दीवानी के विवाद बहुत कम होते है व सरल होते है और इनकी पंचायतें इनके फैसलों का समर्थन कर देती है। सर्वोपरि पंचायत गम्भीर विवादों पर गौर करती है जो सामाजिक, आयात्मिक व सांस्कृतिक मामलों से सम्बनित होते है। आपात स्थिति के अतिरिक्त इसे जेष्ठ व बैसाख के महीनों में किसी देव स्थान/छायादार स्थान पर बुलाया जाता है। लैंगिक संसर्ग व लड़की भगाने जैसे गम्भीर अपराधों में सर्वोपरि पंचायत द्वारा किये गये फैसले अन्तिम व आबद्धकारी होते ह। दोषी व्यक्ति को दण्ड के रूप में बिरादरी को दावत देनी होती है और स्त्री या पुरुष को निर्धारित समय के लिए जाति बहिष्कृत कर दिया जाता है। फिर भोज–भात के बाद पुन: बिरादरी में वापस लिया जाता है। गैर–बिरादरियों द्वारा किए गये अपराधों का निस्तारण इन पंचायतों में नहीं किया जाता है। कोलों में महिलाओं (कोलिन) को अन्य बिरादरियों की तुलना में बराबरी का दर्जा प्राप्त है, विशेषत: क्योंकि परिवार में वे बराबर की कमाऊ सदस्य है । विवाह तय करते समय लड़की के माता–पिता द्वारा वर ढूंढ़ने की पहल करना इनकी परम्परा नहीं है। तलाक में पंचायत के समक्ष स्त्री ही पहल करती है। स्त्री–पुरुष विवादों में कोलों का रवैया बहुत लचीला है और नैतिक ढिलाई आम बात नहीं है। जमींदारों के क्षेत्रों में गरीबी के कारण कोलिन अक्सर यौन शोषण का शिकार होती है। इनका धर्म सर्वचेतनावाद पर आधारित है और अदृश्य आत्माओं, भूत–प्रेतों व पिशाचों पर इनका गहरा विश्वास है। ये सब रहस्यमयी ढंग से इनके भाग्य एवं जीवनचर्या के विधाता समझे जाते ह और दो वर्गों में विभाजित है – एक शुभचिंतक और दूसरा दुराशयवादी। इनकी मान्यता है कि अप्राकृतिक मौतों व महामारियों में मरने वालों की आत्मा भूत–पे्रतों की योनि में प्रविष्ट हो जाती है जो कि रूखे–सूखे वृक्षों, खंडहरों में निवास करते है । इसलिए ऐसे संकट के समय इन स्थानों के निकट से गुजरना खतरनाक माना जाता है। इन दुष्टात्माओं को भगाने के लिए अक्सर कोल लोग भूत–पिशाचों के डाक्टर (भर्रा) द्वारा मंत्रों का पाठ कराकर मुर्गा, सुअर, भेड़ व बकरों की भेंट चढ़ाते है। इसी तरह वे अपनी शुभचिन्तक आत्माओं का सम्मान भी करते है। इनके शुभचिन्तक देवता दूल्हादेव है जिनकी पूजा की जाती है। भुइहार देवता (डीह) को गांव का रक्षक माना जाता है। भासुरिया बांदा के कोलों के एक वर्ग के महान देवता है । इसके अतिरिक्त बाबादेव, भगत और बड़ा देव की भी पूजा की जाती है और यह माना जाता है कि त्योहार व अन्य अवसरों पर देवता जनजातियों के शरीर में प्रवेश कर जाते है। ऐसे अवसरों पर जब सामुदायिक नृत्य होते है तब उसमें भाग लेने वालों पर देवताओं की सवारी होती है। इनके गांवों में मध्य स्थान पर या उनकी झोपडि़यों के सामने खुले आकाश के नीचे मंदिर स्थापित होते है। ये मंदिर मिट्टी के चबूतरों पर कुछ पत्थर की मूर्तियों व झण्डे के साथ होते है। ऐसे मंदिर अमूमन हर परिवार के पास होते है। इनके जीवन में अनविश्वास का महत्वपूर्ण स्थान है तथा शुभ व अशुभ मुहूर्त, ज्योतिष व हस्तरेखा की बड़ी भूमिका है।
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