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कोल समाज के उन लोगो तक बात पहुचनी बहुत जरूरी हैं, की जो सोचते है कि छुआ छूट अब खत्म हो गया हैं।।

हेलो दोस्तों मेरा नाम अंकित रावतेल हैं और में मध्यप्रदेश के खंडवा जिले का रहने वाला हु,
मेरा समाज कोल समाज (आदिवासी) हैं।
आज में आप सब को मेरे साथ हुए एक सच्ची घटना के बारे में बताने जा रहा हु जो लोग सोचते हैं कि छुआ छूट खत्म हो गया है उनको यह जानना बहुत जरूरी हैं।
ये बात है सन 2015 की जब में खंडवा से ट्रेन से जबलपुर गया और फिर मुझे जबलपुर के आगे एक तहसील हैं कटनी रोड पर जिनका नाम सिहोरा है,
वहां जाना था मुझे ,
में बस में बैठ कर जा रहा था जबलपुर से करीब 35 या 40 किलोमीटर बाद एक छोटे से गांव के करीब बस खराब हो गयी थी बहुत देर बैठने के बाद मुझे पानी की प्यास लगी तो में पास ही में एक हैंडपंप था वहां कुछ लोग पानी भर रहे थे, में वहां गया उनका पानी भरना हो गया था पर उनके बर्तन ज्यादा होने के कारण बहुत सारे हैंडपंप के पास ही रखे थे मेने हैंडपंप चला कर पानी पिया और मुह छो कर बस निकल ही रहा था कि वो महिलाएं घर बर्तन रख कर बापस आ रही थी उन्होंने मुझे दूर से ही आवाज लगाये आप नए हो क्या यहां पर मैने कहा हा, वो महिला बोली कहा जाना है आपको मेने बोला बस आगे सिहोरा तक फिर उन्होंने अचानक मुझसे मेरा समाज का नाम पूछा मेने भी सीधे सिम्पल बोल दिया कोल समाज फिर उन्होंने पूछा यह किसमे आता है , मेने कहा आदिवासी उन्होंने यह बात सुनते ही उनके जितने बर्तन हैंडपंप के पास रखे थे सबका पानी मेरे ही सामने बापस फेकने लगे,
में यह सब देख कर हैरान हो गया और चुपचाप वहां से बस की और चला आया, और सोचने लगा कि ये सब क्यों किया उन्होंने जब मुझे नही पता था बस जब सुधरी और चल पड़ी में रास्ते भर यही सोच रहा था कि ये सब हुआ क्यों जब में सीहोरा पहुचा तो रिश्तेदारों को इस घटना के बारे में बताया ।
तब उन्होंने मुझे बताया कि यहां छुआ छूट चलता है, कोई आदिवासी समाज के यहां खाना तो दूर पानी तक नही पीता है, उस घटना के बारे में में बहुत दिनों तक सोचता रहा ये हुआ क्यों, बहुत सोचने के बाद मेने निष्कर्ष निकाला कि यह सब शिक्षा का अभाव और अपने आप को खुद स्वर्ण समाज से नीचे समझना है,
मेने तब भी सोचा कि अब तो समाज को जाग्रत करना बहुत जरूरी है, खास कर उन क्षेत्रों में जहां छुआ छूट का चलन बहुत ज्यादा है, अगर उन क्षेत्रों के आदिवासीयो के बच्चे अगर शिक्षित हो गए तो छुआछूत वो नही मानेंगे और बल्कि इसका विरोध करेंगे और हम सभी यही चाहते है, की आने वाला आदिवासी समाज ऐसा हो कि अपने हक़ की लड़ाई हर कोई अपनी इच्छा शक्ति से लड़ सके।।

कोल समाज के उन लोगो तक बात पहुचनी बहुत जरूरी हैं, की जो सोचते है कि छुआ छूट अब खत्म हो गया हैं।। कोल समाज के उन लोगो तक बात पहुचनी बहुत जरूरी हैं, की जो सोचते है कि छुआ छूट अब खत्म हो गया हैं।। Reviewed by दुनिया मनोवैज्ञानिक on 07:01 Rating: 5

2 comments:

  1. ऐसी घटना आपका ही नही बल्कि कई ऐसे जगहो पर आज भी छूआ छूत की परंपरा चल रही है।हमे हमारे समाज के सभी लोगो को ईसे पूरजोर विरोध कर समाप्त करने की पहल करने की जरूरत है।

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