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कोल 4

साम्राज्यवाद व सामन्तवाद–परस्त आर्थिक नीतियों की `विकास‘ दिशा ने एक और विशेष असुरक्षा कोलों के जीवन में उत्प कर दी है। वन व खनिज सम्पदा की लूट की नीति और ठेकेदारों के कर्जजाल की परिस्थिति ने कोल आदिवासियों को बड़े पैमाने पर अपने मौलिक निवास स्थान से भी विस्थापित होकर इलाके की खदानों में काम करने के लिए काफी हद तक तितर–बितर किया है। इसका परिणाम यह हुआ कि इस बिरादरी के काफी लोग आवासीय पट्टों से भी वंचित हो गए। शायद पूरे इलाके में यही एक बिरादरी होगी जिसके कई सदस्यों के पास न तो अपना निजी आवास है और न ही आवास का अधिकार ही है। यह स्थिति उनकी दरिद्रता, पिछड़ेपन तथा जमींदारों व ठेकेदारों पर आश्रित रहने में बड़ा योगदान करती है। कोल आदिवासियों के पिछड़ेपन को बनाये रखने में उनकी बड़ी बसापत के इलाकों में स्कूलों व अस्पतालों का अभाव भी एक बड़ा कारण है। जहाँ अनुसूचित जनजातीय दर्जा मिलना उनके विकास के लिए सरकार पर एक विशेष जिम्मेदारी थोप सकती है, इस पहचान से उन्हें वंचित कर इस विशेष जिम्मेदारी के निर्वाह से सरकार अपने को मुक्त कर देती है। ये विशेष जिम्मेदारियां क्या है, जिनके लिए संघर्ष, जनजातीय दर्जे के संघर्ष के साथ अभि रूप से जुड़ा हुआ है? ये विशेष जिम्मेदारियां है कोल आदिवासियों को खेती योग्य जमीन के पट्टे देना, उन्हें आवास के पट्टे देना, बालू व गिट्टी की खदानों को उनके नाम करना और खनन करने का उन्हें अधिकार देना, खनिजों के व्यवसाय में उनको प्राथमिकता दिलाना; पत्थर, गिट्टी व बालू का न्यूनतम रेट तय करना, वन विभाग द्वारा उन्हें उजाड़ने पर रोक लगाना, तेन्दू पत्ता, महुआ, इमारती लकड़ी आदि वनोत्पादों पर इनके समूहों का प्रा‌धिकार स्थापित करना, इनके पारम्परिक, प्राकृतिक व सामूहिक जीवन–पद्धति की रक्षा व उसका विकास करते हुए राजनैतिक ढांचे में उसको विशेषा‌धिकार देना, इनके विकास के लिए इनके इलाकों में शिक्षा–स्थलों, विद्यालयों व अस्पतालों, पेयजल, बिजली आदि का विकास करना, गरीबी की इनकी विशेष परिस्थिति के कारण इनका सहयोग करने के लिए विशेष राशन प्रणाली स्थापित करना, इनके स्थानीय रोजगार के विकास के लिए विशेष योजनाएं लागू करना और इनकी बस्तियों एवं निवास स्थान इत्यादि के विकास के लिए विशेष सहयोग करना। राजनीतिक दुरूपयोग कोलों को जनजाति दर्जा देने और नौकरियों में एस0टी0 श्रेणी में लिए जाने के सवाल को काफी समय से कई राजनैतिक दल उठाते रहे है और आमतौर पर वोट बैंक की राजनीति के लिए इसका दुरूपयोग करते रहे है। कोलों में थोड़े से पढ़े–लिखे तबके के लोग इस सीमित दायरे में उठ रही मांग से आकर्षित भी हुए हैं क्योंकि वही हिस्सा इससे लाभान्वित हो सकता है। कोलों को जनजातीय दर्जा देने का यह पक्ष पूर्णतया न्यायोचित है। पर केवल यह तबका सरकार को जनजाति दर्जा देने के लिए मजबूर करने के लिए पर्याप्त दबाव नहीं बना सकता। अत: यह आवश्यक है कि इस मांग को कोल समुदायों के पूरे अधिकारों के परिप्रेक्ष्य में उठाया जाये। जो दल इसे इस रूप में नहीं उठाते, जाहिर है कि कहीं न कहीं वे कोलों को वंचित रखने वालों के साथ जुड़ाव रखते है। राजनैतिक दलों में बिरादरी के नाम पर काम करने वाले कांगे्रस व भाजपा ने कभी भी इस मांग को औपचारिक रूप से नहीं स्वीकार किया है, परन्तु सपा व माकपा ने इसका चुनावी दुरूपयोग किया। बसपा ने इस पर कोई टिप्पणी ही नहीं की।
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