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कोल 5

कठोर परिस्थितियों में काम करने वाले इन वंचित समुदायों के बीच बड़े पैमाने पर गैर–सरकारी संगठन (एन.जी.ओ.) भी सक्रिय है, जो सरकारी योजनाओं के अन्तर्गत अथवा विदेशी संस्थाओं से वित्त–पोषित हैं। ऐसे संगठन भी यदाकदा जनजाति दर्जे की मांग को उठाते रहे है। इसके अतिरिक्त कोल उत्थान के नाम पर भी कई स्थानों पर समितियां गठित हुईं परन्तु न तो इस मांग पर व्यापक स्तर पर संघर्ष संगठित हुआ है और न ही इनमें से किसी संगठन ने इस सवाल पर कोई बड़ी पहल की। इतना तो स्पष्ट है कि आदिवासी जनजाति दर्जे का सवाल जब भी कोल आदिवासियों के मौलिक विकास से जुड़कर उठेगा, तो वे सारे संगठन जो आदिवासी विकास की औपचारिकता पूरी करते रहे है और बड़े सामन्तों, ठेकेदारों व माफिया आदि से इन अधिकारों को छीनकर हासिल करने की दिशा नहीं अपनाते रहे है, संघर्ष में नहीं टिकेंगे। जनजाति दर्जे की मांग से जुड़े और एक पहलू पर गौर करना भी जरूरी है। न तो यह मांग प्रान्त की अन्य जनजातियों के अधिकारों पर हमला है और न ही यह गैर–जनजाति अन्य दलित बिरादरियों के विरुद्ध है। आमतौर पर इस मांग के उठने पर सरकार यह प्रचार शुरू कर देती है कि जनजाति विकास के बजट की धनराशि सीमित है और एक नई जनजाति को अनुसूचित जनजाति में अगर शामिल कर लिया तो सुविधाएं बांटनी होंगी। सच यह है कि सरकार के पास सभी गरीबों के विकास के लिए फण्ड सीमित है और जो है वह इलाके के भ्रष्ट व दबंग लोग ही हजम कर जाते ह। कोलों को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देना उनका मौलिक अधिकार है और जनजातियों के विकास के लिए फण्ड बढ़ाने का सवाल सभी जनजातियों के संघर्ष पर निर्भर है। उसी फण्ड का मिलना संभव है जिसके लिए संघर्ष मजबूती से होगा। यह किसी भी तरह से कोलों को अनुसूचित जाति में शामिल करने से बाधक नहीं हो सकता। अगर एक नई जनजाति जुड़ेगी तो उसके लिए अलग फण्ड निर्धारित किए जाने का संघर्ष भी होगा। दूसरा पक्ष यह है कि आदिवासी दर्जे की लड़ाई इलाके के अन्य गरीब दलित बिरादरियों के विरुद्ध नहीं है। जाहिर है कि अगर कोलों की जनजाति दर्जे की लड़ाई बढ़ेगी और ये अपने कुछ हक प्राप्त करने में सफल होंगे तो इससे कोई भी अन्य दलित व गरीब बिरादरी वंचित नहीं होगी, बल्कि ठेकेदार व जमींदार तबका ही वंचित होगा। जब जमींदार व ठेकेदार कमजोर होंगे तब अन्य गरीब व दलित बिरादरियों के अधिकारों के संघर्ष की संभावनाएं भी विकसित होंगी। अत: यह लड़ाई सभी गरीबों के जल, जंगल, जमीन पर अधिकार की पूरक है, न कि उसके विरुद्ध।
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